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फँसे ऐसे कीचड़ में गदहे बेचारे

angaare
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नियति ने चली चाल इतनी भयानक,

जो ढीले थे फंदे, कसे जा रहे हैं !
फँसे ऐसे कीचड़ में गदहे बेचारे,
निकलने के बदले धँसे जा रहे हैं !
.
चढ़ा था नशा जो मिला था सिंहासन,
न सोचा था ऐसे भँवर में पड़ेंगे !
बपौती समझ, कुर्सियों से थे चिपके,
न सोचा था इतनी बेशर्मी करेंगे !!
.
बिना डोर कि बन गए हैं तिलंगी,
दिशाहीन होकर उड़े जा रहे हैं !
फँसे ऐसे कीचड़ में गदहे बेचारे,
निकलने के बदले धँसे जा रहे हैं !
.
युवराज, रानी सहित सारे नायक,
के चेहरे की कालिख चमकने लगी है !
जो जनता को कीड़ा-मकोड़ा समझते
थे, कुर्सी उन्हीं की सरकने लगी है !!
.
न आती इन्हें शर्म अपने किये पर,
गज़ब बेहया हैं, हँसे जा रहे हैं !
फँसे ऐसे कीचड़ में गदहे बेचारे,
निकलने के बदले धँसे जा रहे हैं !
.
भरी इनकी हाँड़ी, किये पाप इतने,
लबालब हुआ, अब छलकने लगा है !
नहीं खेल पाएंगे आपस में मिलकर,
मुखौटा सभी का उतरने लगा है !
.
जनता ने अपनी हिलाई जो चुटकी,
तो खटमल के जैसे पिसे जा रहे हैं !
फँसे ऐसे कीचड़ में गदहे बेचारे,
निकलने के बदले धँसे जा रहे हैं !
.
दिखा आँकड़ों की चमकती सियाही,
किया करते थे ये सभी झूठे वादे !
न नीयत कभी साफ़ इनकी रही थी,
न इनके कभी साफ़ वादे – इरादे !
.
अब आई है बारी तड़पने की इनकी,
जो खुद से ही खुद को डँसे जा रहे हैं !
फँसे ऐसे कीचड़ में गदहे बेचारे,
निकलने के बदले धँसे जा रहे हैं !

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