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प्याज आज नाराज बहुत है, आँखें लाल किये बैठा !

angaare
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प्याज आज नाराज बहुत है, आँखें लाल किये बैठा !
और सभी जा दुबके बिल में, यह सबके सिर चढ़ ऐंठा !
सब्जी-मित्रों ने जब पूछा- “क्यों भैये क्या बात हुई ?”
रातों-रात गगन में पहुंचे, राजा सी औकात हुई !
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बाँह चढ़ा, नथुने फड़का कर, गरज-तड़प कर बोल पड़ा !
कैसे क्या कुछ हुआ, भेद इन सब बातों का खोल चला !
“सब्जी की दुनिया का पिछड़ा बहुसंख्यक कहलाता हूँ !
भाव नहीं मिलने पर सबके सिर पर चढ़ इतराता हूँ !
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बात पते की एक सुनाऊं, राज बहुत ही गहरा है !
कुछ हफ़्तों की खातिर मेरा, फ्यूचर बहुत सुनहरा है !
नेता जी के सपने में घुस गया एक दिन चुपके से !
ए० सी० की ठंडी बयार में, कम्बल नीचे दुबके थे !
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बंद आँख, मुँह खुला हुआ, दिल की धड़कन भी जारी थी !
गुर्राहट जैसी खर्राहट, सब आहट पर भारी थी !
भ्रष्ट खुराफाती दिमाग, इतने पर भी था जगा हुआ !
नई-नई तरकीब लूट की, गढ़ने में था लगा हुआ !
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ज्योंहीं नजर मिली मुझसे, नेताजी को कुछ चैन मिला !
चमक उठा शैतानी चेहरा, ज्यों अंधे को नैन मिला !
बातें होने लगी परस्पर मेरी औ’ मंत्री जी की !
आँखों में आंसू भर-भर के, बात शुरू मैंने ही की !
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“मेरे को पेट्रोल हमेशा ताना मारा करता है !
भले सर्वप्रिय हो तुम लेकिन सिक्का मेरा चलता है !
घर-घर की थाली में होगी पहुँच तुम्हारी, इससे क्या ?
बिना तुम्हारे सब्जी की रंगत फीकी हो, इससे क्या ?
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मैं “फारेन” से आता हूँ, कीमत है मेरी “डालर” में !
चमक देख लो मेरी नेता या मंत्री के लाकर में !
बातें सुन उसकी मेरा जी, जल-जल जाया करता था !
कभी-कभी तब “आलू” आकर दिल बहलाया करता था !
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तुम तो मंत्री हो खेती के, इतनी सी विनती सुन लो !
खडा एलेक्शन सिर पर, अपना लाभ-हानि मन में गुन लो !
नहीं दुबारा आना, जितना लूट सको, जी भर लूटो !
जनता का सिर ओखल में है, कूट सको, जितना कूटो !
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कह दो सबको, मुझे बंद कर दें गोदामों के भीतर !
नई पौध की ह्त्या करवा दो “फालिन” को बुलवा कर !
एक नया इतिहास बना दो, ऐसी कर दो तईयारी !
ब्रेकिंग न्यूज़ चले चैनल पर “प्याज हुआ सब पर भारी !”
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आम आदमी की चीखों का, तुम तो मजा उठाते हो !
जल में डूबे गाँव देखने, वायुयान से जाते हो !
भोजन के पैकेट नभ से, तुम फिकवाते हो धरती पर !
कुछ ही गिरते हैं गावों में, ज्यादा गिरते परती पर !
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तुम तो इतने शातिर हो, लोमड़ियाँ भी शरमा जायें !
नीच धुर्तई में तुमसे, कुटीनिया भी शरमा जायें !
सुनो, जाम खुशियों का थोड़ा सा मुझको भी पीने दो !
दो पल को ही सही “बॉस” बनकर मुझको भी जीने दो !
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बस इतनी सी बात है मित्रों, चन्द दिनों का मेला है !
जमाखोर और खेती वाले मंत्री जी का खेला है !
तुम सब भी हिम्मत दिखलाओ, जा मंत्री जी से मिल लो !
बहुत बड़ा शातिर है भइया, बात हमारी यह लिख लो !
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बस अब मैं चलता हूँ मित्रों, राम ! राम ! स्वीकार करो !
कुछ दिन का ही सही, बना हूँ राजा, अंगीकार करो !
नेताजी की कृपा रही तो, सबका होगा जन्म नया !
आँख खोल कर देखो प्यारे ! और अभी होता है क्या ?

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