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कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !

angaare
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ताला दे अपने होठों पर, भगवन को चाबी दे दो !

इनके हाथों में अपने होठों की आज़ादी दे दो !!
न्याय-धर्म की बात अगर की, जीवन भर पछतायेगा !
कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !
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भगवन आपस में लड़ लें, गाली दें या जूता मारें !
या कुरसी तोड़ें संसद में, या अपना कुरता फाड़ें !
“जबरा मारे-रोने ना दे” सत्य वचन कहलायेगा !
कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !
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पक्ष-विपक्ष भले ना जानें, पर तुमको तो है मालूम !
लहू लगा है इनके मुँह पर, फिर भी बनते हैं मासूम !
पता नहीं कितने बेटों का, हृदय-पिण्ड यह खायेगा !
कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !
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नीच पडोसी ताल ठोक, हर बार चुनौती देता है !
वीर सैनिकों के सिर के, दो-चार फिरौती लेता है !
सैनिक मरें, इसे क्या, यह तो आँचल में सो जाएगा !
कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !
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ये हत्यारी राजनीति है, तू भोली-भाली जनता !
गीदड़-श्वानों की निरीह प्राणी से कब होती ममता ?
आज नहीं तो कल तुमको-हमको-सबको खा जाएगा !
कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !
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ये संगीनों के साये में, कवच यन्त्र में चलते हैं !
मालपुआ इनको नसीब हम बीस रुपये में पलते हैं !
भूल गया है, आज नहीं तो कल यह ठोकर खायेगा !
कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !
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कलियुग के ये देवदूत हैं, झुको-झुको सत्कार करो !
आश्वासन की गठरी दें या, जो भी दें, स्वीकार करो !
शीश झुका आशीष ग्रहण कर, धन्य-धन्य हो जाएगा !
कलम तोड़ कर फेंकों वरना, खुदा खफा हो जाएगा !
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लेकिन भूल गया है इसके, हाथ न कुछ भी आयेगा !
सवा अरब नर-नारायण के सम्मुख क्या टिक पायेगा ?
बड़े-बड़ो की नहीं चली, तेरी कैसे चल पायेगी ?
नहीं झुकी है कलम कभी और, कभी नहीं झुक पायेगी !

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