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नहीं दाल में काला, पूरी दाल यहाँ पर काली है !

angaare
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सच्चाई क्या छुप सकती है, लाख छुपाओ परदे से !
दूर अन्धेरा होता जब दिखती सूरज की लाली है !
झूठ…. झूठ पर झूठ बताओ कितने दिन तक बोलोगे !
नहीं दाल में काला, पूरी दाल यहाँ पर काली है !
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उठा रहा ऊँगलियाँ देश का बच्चा-बच्चा आज यहाँ !
एक सदी के राज-काज का लेखा-जोखा माँग रहा !
सिसक रही है प्रजा और तू मना रहा दिवाली है !
नहीं दाल में काला, पूरी दाल यहाँ पर काली है !
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करवट बदल रहा अजगर, रक्तिम नयनों से ताक रहा !
दुष्ट पडोसी भारत की रक्षित सीमा में झाँक रहा !
धीमी गति से निगल रहा, वह भारत की हरियाली है !
नहीं दाल में काला, पूरी दाल यहाँ पर काली है !
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न्यायपालिका दासी बन पंजों में तेरे सिसक रही !
लेकिन भूल गया धरती, तेरे पैरों की खिसक रही !
जान गया है देश कि तेरे आँसू भी घडियाली हैं !
नहीं दाल में काला, पूरी दाल यहाँ पर काली है !
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तेरे पाप-यज्ञ में कितनी “दामिनियों” का होम हुआ !
जिम्मेदार सभी पापों का तू बतला दे कौन हुआ ?
निर्दोषों का लहू बना तेरे चेहरे कि “लाली” है !
नहीं दाल में काला, पूरी दाल यहाँ पर काली है !

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