फिर घाव दे गया भारत को, कर गया कलंकित लोकतंत्र ! कायर सा छिपकर परदे में, देकर बयान बहलाते हो ! हो गई छिन्न कितनी काया, कितने घायल लाचार हुए ! पुंसत्वहीन कापुरुष ! व्यर्थ तुम जन-नायक कहलाते हो !! . था ज्ञात कि होगी अनहोनी, फिर भी प्रतिकार न कर पाये ! कर सके नहीं कोई उपाय, जिससे यह संकट टल जाये ! भारत की जनता की आँखें, कर रही प्रश्न यह बार-बार ! ” आतंकी खूनी पंजे ” का, कबतक झेलेंगे हम प्रहार !! . फिर से तुमको दे गया चोट, गालों पर चाँटा मार गया ! फिर एक नया खूनी मंजर, दे कर तुमको उपहार गया ! सोने-चाँदी से भरा पेट, अब लाशें गिन, दिल बहलाओ ! “हम कड़ी सजा देंगे” ऐसा कह फिर जनता को समझाओ !! . जाकर पूछो उन बच्चों से, होकर अनाथ जो रोते हैं ! आँखों में उनके अश्रु नहीं, लोहू से गाल भिगोते हैं ! जाकर पूछो उन माँओं से, विधवावों से, अबलाओं से ! उस घर से, गली मोहल्ले से, जाकर पूछो उन गाँवों से !! . हो गए काल-कवलित कितने, कितने घायल लाचार हुए ! जाने कितने जीवन भर को, बेबस-अपंग बेकार हुए !! पर तुमको क्या, तुम तो मुआवजा देकर छुट्टी पा लोगे ! तुम तो ऐसे नर-राक्षस हो, जो सड़ी-गली भी खा लोगे !! . पर रहे ध्यान अब जाग रहा है, भारत का बच्चा-बच्चा ! तुम लाख छिपाओ अपने को, नंगा हो रहा घृणित चेहरा ! “तुम हो विशिष्ट” यह बारूदी विस्फोट नहीं पहचानेगा ! श्रीमन्त आज कहलाते हो, पल में “स्वर्गीय” बना देगा !!
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