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दिग्भ्रमित युवा !

angaare
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(यह रचना भारत के उन दिशाभ्रमित युवकों के लिए है,
जो आतंकवादियों के बहकावे में आकर अपने ही देश
से गद्दारी कर रहे हैं !)
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किसके लोहू से खेल आज तुम फाग रहे हो बोलो तो !
तुम किसको मार गिराते हो, क्या मांग रहे हो बोलो तो !
क्या लक्ष्य तुम्हारा बतलाओ, किसके इंगित पर चलते हो !
सोचो विवेक से तब बोलो, तुम स्वयं स्वयं को छलते हो !!
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तुम इस्तेमाल किये जाते, आ जाओ सत्य दिखाऊँ मैं !
जिसके द्वारा निर्देशित हो, उसकी असलियत बताऊँ मैं !
जो तुम्हे बनाकर कठपुतली, मनमाने नाच नचाता है !
जिसके बहकावे में आकर अस्तित्व भस्म हो जाता है !!
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नरमेघ यज्ञ के हवनकुंड का पुरोडाश, कुछ और नहीं !
अस्तित्व तुम्हारा प्यादे का, क्यों करते इसपर गौर नहीं !
भारत हो जाए खंड-खंड, उत्कर्ष धूल में मिल जाये !
गंगा की पावन धारा में, हालाहल तीखा घुल जाये !!
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अस्सी करोड़ बेटों की माता की ह्त्या करनेवाले !
जो तुम्हे बनाकर दुश्शासन, उसका दुकूल हरनेवाले !
बन्दूक-तोप-गोला-गोली, कुत्सित विचार जो बाँट रहे !
जो जिह्वा घृणित बढ़ा माँ के, तन का शोणित है चाट रहे !!
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जलती मशाल दे हाथों में, जो कहते अपना घर फूंको !
अपने भ्राता के प्राण हतो, बहनों की इज्जत पर थूको !
होकर विवेक से शून्य, इशारे पर जिसके आगे बढ़ते !
वे अधम तुम्हारे क्या लगते, जो पाप तुम्हारे सिर मढ़ते !
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दिन याद करो जब तुम निकले होगे जननी का उदर फाड़ !
आँखों से आँखे मिला कहो, करती थी कितना तुम्हे लाड !
जिसके आँचल की छाया में, खेले-कूदे तुम बड़े हुए !
उसपर ही छुरी चलाओगे, क्या दिल के इतने कड़े हुए !
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मल-मूत्र तुम्हारा पोंछ-पोंछ, स्नेहिल कर से दुलराती थी !
छाती का दूध पिला तुमको, लोरी गाकर हलराती थी !
इस कपट-द्यूत में उस माँ के अस्मत को मत नीलाम करो !
चुल्लू भर जल में डूब मरो, मत अपने को बदनाम करो !
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असि उठा उन्हीं पर वार करो, जो मरण-यज्ञ के पोषक हैं !
अवरोध प्रगति की राहों के, जो कुत्सा के परितोषक हैं !
हुंकार करो तुम टूट पड़ो, इन नीच नराधम कागों पर !
जो दृष्टि लगाए बैठे हैं, भूखी जनता के भागों पर !
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लो खड्ग उठा विकराल काल को ताल ठोक कर ललकारो !
बढ़कर दुश्मन पर बाज सदृश झपटो, पल भर में संहारो !
वह धूर्त नीच पाखंडी है, जो आज तुम्हारा मीत बना !
बाहर पौरुष का दंभ भरे, भीतर से है भयभीत बना !!
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विस्मृत कर दो बीती बातें, मत देखो तुम अपने पीछे !
संभलो अब भी दिग्भ्रान्त वीर, जाओगे कितना तुम नीचे !
माँ के नयनों का जल पोंछों, है यही तुम्हारा प्रायश्चित !
तुम संभलो तो फिर भारत का, होगा विकास यह है निश्चित !!
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